Read this article in Hindi to learn about the various techniques used in diagnosing diseases of the human venous system.
Technique # 1. फ्लीवोग्राफी:
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फ्लीवोग्राफी के लिए कान्ट्रास्ट शिरा तन्त्र को किसी ट्रिव्युटरी में डालते हैं ।
रोगी की तैयारी:
1. रोगी को 4-6 घण्टे जांच के पहले खाना देना बन्द कर देते हैं ।
2. यदि रोगी के पैर में सूजन हो तो पैर को कुछ समय उठा कर रखना चाहिए ।
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विधि:
रोगी को सुपाइन तथा 20-40 डिग्री सिर वाला सिरा उठी हुई टेबल पर लिटाते हैं । पैर की शिराओं को रक्त से भरने के लिए एंकिल के ऊपर एक ट्यूरनीकेट लगा देते हैं । फुट की ऊपरी सतह को साफ कर 21 गेज की वटरफ्ताइ नीडल परिधीय शिरा में लगा देते हैं जिससे सेलाइन युक्त 21 मि॰लि॰ सिरिंज से जोड़ देते हैं ।
दूसरा ट्यूरनीकेट घुटने के ऊपर सुपरफीसियल शिराओं को बंद करने तथा डीप शिराओं को भरने के लिए लगाते हैं । अब सेलाइन सिरिंज के स्थान पर एक सिरिंज जिसमें 60 मि॰लि॰ कान्ट्रास्ट (250 मि॰ग्रा॰ आयोडीन/मिलि.) युक्त होती है, लगा देते हैं ।
अब कान्ट्रास्ट 20-40 अंश फुट डाउन टेबलटिल्ट में ही फ्लोरोस्कोपी में देखते हुये काट्रास्ट डालना आरंभ करते हैं । अब तीन फिल्में एन्टीरोपोस्टीरियर पोजीशन में पैर को अन्दर की ओर घुमाते स लेनी चाहिए । अब पैर को बाहर की ओर घुमाकर काफ शिराओं को लैट्रल बिव में तीन फिल्में लेते हैं । इन फिल्मों में पैर हमेशा आना चाहिए ।
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पैर को एन्टीरोपोस्टीरियर पोजीशन में लाकर घुटने के ऊपर स्थित ट्ल्यरबीकेट निकाल देते हैं, जिससे कान्ट्रास्ट सुपरफीसियल व कामन फीमोरल शिराओं को भर देता है । इस भाग की दो फिल्में ले लेते हैं । फिर ट्यूरनीकेट खोलकर पेल्विस तथा ग्रोइन भाग की तीसरी फिल्म लेते हैं । वीनोग्राम के पश्चात शिराओं को कन्ट्रास्ट युक्त करने के लिए नार्मल सेलाइन डालते हैं व पैर को उठाकर रखते हैं ।
Technique # 2. इन्टरवेन्सनल कैथेटराइजेशन:
परक्यूटेनियस बैलून एन्जियोप्लास्टी:
विधि:
आरंभिक एन्जियोग्राफी के पश्चात एक बैलून को गाइड वायर के ऊपर एच्छिक स्थान तक पहुंचा देते हैं । अब बैलून को डायलूट कान्ट्रास्ट माध्यम द्वारा फुला देते हैं । यह क्रिया बार-बार करते हैं जिससे टिश्यू टूट जाये । कैथेटर निकालने के बाद पुन: एन्जियोग्राफी द्वारा इसकी जांच करते हैं ।
निम्न बातें ध्यान में रखनी चाहिए:
i. गाइड वायर कसा रखना चाहिए ।
ii. बैलून का द्रव निकाल कर इसका आयतन कम करना चाहिए ।
iii. बैलून को सेलाइन से चिकना कर लेना चाहिए जिससे वेसल में आराम से जा सके ।
iv. बैलून को घुमाकर त्वचा से रक्त नलिका में पहुंचाना चाहिए ।
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v. बैलून को कार्बनडाइआक्साइड से फ्लस कर नाइट्रोजन निकाल देनी चाहिए ।
vi. दाब 3-10 वायुमण्डलीय दाब के बराबर लगाना चाहिए ।
vii. रोगी को जांच के दौरान हीपेरिनाइज कर देना चाहिए ।
viii. उपयुक्त सीडेसन दर्द निवारक तथा निश्चेतना का प्रयोग किया जा सकता हे ।
Technique # 3.परक्यूटेनियस ट्रान्सल्युमिनल कोरोनरी एन्जियोग्राफी:
यह एक कठिन जांच है जिसे अनुभवी एक्स-रे विशेषज्ञ द्वारा ही किया जाना चाहिए । इसके लिए छोटे सिरे वाले गाइडिंग कैथेटर, फाइन सिटरेबल गाइडवायर तथा लो प्रोफाइल बैलूनों की आवश्यकता होती है । 30 प्रतिशत रोगियों में पुन: स्टिनोसिस हो जाती हे ।
इसके एन्जाइना के इलाज में, एक्यूट मायोकोर्डियल इनर्फाक्सन में थ्रोम्बोलिटिक थेरेपी के साथ, जटिल मल्टीवेसल रोगों व कोरोनरी ग्राफट स्टीनोसिस के इलाज में करते हें । एक स्टिरेवल बैलून कैथेटर जिसका स्वतंत्र रूप से घूमने वाला गाइड वायर होता है स्टिनोसिस से गुजारते हैं । इसे तब तक फैलाते हैं, जब तक डिर्फार्मिटी समाप्त नहीं हो जाती है ।
रोगी को कई वेसोडाइलेटर तथा एण्टी प्लेटलेट एजेन्ट देते हैं, जैसे डाइपेरडेमाल, निफिडेपीन, नाइट्रैटस, जो स्पाज्म व थ्राम्बोसिस को कम करते हैं । इन्ट्रावीनस हीपेरिन व सार्विट्रेट भी देते हैं । बैलून डाइलेशन के साथ लेजर एन्जियोप्लास्टी का प्रयोग भी करते हें । रोगी की जांच से कोरोनरी स्पाज्म, टेम्पोनाड तथा गाइडवायर का सिरा टूट सकता है ।
Technique # 4. डिजटल सब्सट्रैक्शन एन्जियोग्राफी:
सामान्य एन्जियोग्राफी में कान्ट्रास्ट युक्त नलिकाओं को हड्डियों और अन्य डेन्सिटियों को सब्सट्रैक्टिंग फोटोग्राफी द्वारा अलग किया जा सकता है । यह कन्ट्रोल फिल्म से सब्सट्रैक्शन मास्क बना कर कान्ट्रास्ट युक्त फिल्मों से मैच करते हैं । बैक ग्राउन्ड की रचनायें अलग हो जाती हैं । सिर्फ कान्ट्रास्ट युक्त रक्त नलिकांयें ही दिखती हैं । (चित्र 11.23)
इन फिल्मों में उपस्थित सूचना बदली नहीं जा सकती है । तथा थोड़े डिसटारजन की भी सम्भावना रहती है । डिजटल सब्सट्रैक्शन एन्जियोग्राफी तकनीक इलैक्ट्रॉनिक विधि से भी की जा सकती है । ऐच्छिक भाग की प्रच्छाया इमेज मास्क के रूप में इमेंज इन्टेन्सीफायर पर बनी है जो लागरेदमिक विधि द्वारा कान्ट्रास्ट युक्त प्रच्छाया से अलग किया जाता है ।
इसके लिए इमेज को पहले डिजिटेलाइज करते हैं । इनके फर्क को सब्सट्रैक्शन के बाद इलेक्ट्रॉनिक विधि से एनहान्स करते हैं । इस विधि द्वारा सामान्य एन्जियोग्राफी की अपेक्षा बहुत कम कान्ट्रास्ट की मात्रा में अच्छी प्रच्छाया प्राप्त की जा सकती है ।
यद्यपि स्पेसियल रिजोज्यूसन कम होता है पर कान्ट्रास्ट रिजोल्यूसन सामान्य की अपेक्षा ज्यादा अच्छा होता है । सब्सट्रैक्शन साथ के साथ स्क्रीन पर प्राप्त हो जाती है । इमेज को पोस्ट प्रोसेसिंग द्वारा और अच्छा किया जा सकता है ।
यह निम्न विधियों द्वारा सम्भव है:
1. क्वालिटेटिव – मैग्नीफिकेशन / जूम, कंटूर एनहैन्समेंट / क्रिसिपंग
2. क्वान्टिटेटिव – लम्बाई का माप / रक्त नलिका
3. प्रच्छाया इकट्ठा करना / आर्कीविंग Archiving
Technique # 5. इन्ट्रावीनस डी एस. ए.:
इसमें प्राय: रोगी को बिना भर्ती किये किया जा सकता है । शिरा तंत्र में कान्ट्रास्ट डालकर ऐच्छिक स्थान की फिल्में, जब कान्ट्रास्ट धमनियों से गुजर रहा होता है, तो ले लेते हैं । लगभग 30-40 मि॰लि॰ कान्ट्रास्ट 20-25 मि॰लि॰ / सेकेण्ड की दर से देते हैं ।
प्राय: बड़ी शिरा, जैसी एन्टी क्यूविटल इस कार्य हेतु प्रयोग करते हैं । हाईफ्लों पांच फेंच गेज कैथेटर को गाइड वायर की मदद से बेसिलिस वेन सुपीरियर विना केवा से होते हुये दायें आट्रियम में पहुंचाया जा सकता है । उदर के लिये जांच के पूर्व 20 मि॰ग्रा॰ बस्कोपान दे दिया जाता है ।
फीमोरल एन्जियोग्राफी के लिए 36 से॰मी॰ की इन्टेसीन्फायर उपकरण की आवश्यकता होती है । पूरे फीमोरल तन्त्र को पांच कान्ट्रास्ट इन्जेक्शनों द्वारा किया जा सकता है । सिग्नल डेन्सिटी को बराबर करने के लिए फिल्टरों का प्रयोग करते हैं । उदाहरण के तौर पर पैरों के बीच उपस्थित गैस के लिए ।
महत्व:
निम्न रोगों के निदान में इसका प्रयोग होता है:
1. बह्मकपालीय कैरोटिड धमनी के रोग ।
2. सबक्लोवियन धमनी के रोग ।
3. एवोरटिक आर्च के रोग ।
4. पल्मोनरी एम्बोलिक रोग ।
Technique # 6. अन्त: धमनीय (डी. एस. ए.) डिजटल सब्सट्रैक्सन एन्जियोग्राफी:
इस जांच के लिए कान्ट्रास्ट धमनी में डालते हैं । इसमें कान्ट्रास्ट की बहुत कम मात्रा की आवश्यकता होती है ।
सामान्य एन्जियोग्राफी की अपेक्षा इसमें:
i. कम मात्रा में कान्ट्रास्ट की आवश्यकता होती है ।
ii. बहुत छोटे फ्रेन्च आकार के कैथेटर प्रयोग हो सकते हैं ।
iii. इन्डायरेक्ट वीनोग्राफी की जा सकती है ।
iv. यह रीयल टाइम तथा रोड मैचिंग क्षमता युक्त होती है ।
v. सामान्य एन्जियोग्राफी में दोनों लिम्बों में कान्ट्रास्ट के बहाव में फर्क को नहीं पकड़ा जा सकता है । जबकि इस जांच द्वारा यह सम्भव है ।