Read this article in Hindi to learn about the four main glands found in human body. They are:- 1. Pituitrary Gland 2. Adrenal Gland 3. Thyroid Gland 4. Pancreas.
1. पिट्यूटरी ग्रन्थि (Pituitary Gland):
यह पिट्यूटरी फोसा में स्थित एक छोटी लाल रंग की ग्रन्थि है, जो मस्तिष्क के बेस से एक स्टाक या इन्फन्डीबुलम द्वारा जुड़ी हुई होती है । यह एक प्रमुख ग्रन्थि हैं जिसे लम्बे समय तक हाइपोथेलेमस के कार्य को जानने से पहले इसे अन्त: स्रावी तन्त्र का नियंत्रण केन्द्र माना जाता है ।
क्योंकि इसके नष्ट होते ही जानवरों में अन्य ग्रन्थियों (थायरायड, एड्रीनल गोनड्स) के कार्य गड़बड़ हो जाते हैं, तथा जानवरों की भूख समाप्त हो जाती है । और अन्त में गुर्दे की खराबी व शरीर से अधिक सोडियम की हानि के कारण मृत्यु हो जाती है । पिट्यूटरी ग्रन्थि को तीन भागों में बांटा जा सकता है ।
1. एन्टीरियर पिट्यूटरी या एडिनोहाइपोफिसिस
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2. पास्टीरियर पिट्यूटरी या (Neurohypophysis)
3. इन्टरमीडियट लोब
निकलने वाले मुख्य हारमोन:
एन्टीरियर पिट्यूटरी:
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1. थायरायड स्टीमुलेटिंग हारमोन (TSH)
2. एड्रीनो कार्टिकल हारमोन (ACTH)
3. ग्रोथ हारमोन या सोमैटोस्टेटिन (GH)
4. फालिकिल स्टीमुलेटिंग हारमोन (FSH)
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5. ल्यूटेनाइजिंग हारमोन (LH)
6. इन्टरस्टीशियल सेल स्टीमुलेटिंग हारमीन (ICSH)
7. प्रोलैक्टिन (Prolactin)
पास्टीरियर:
वेसोप्रेसिन या एण्टीडाइयूरेटिक हारमोन (ADH)
आक्सीटोसिन:
इन्टर मीडिएट लोब:
मिलेनोसाइट स्टीमुलेटिंग हारमोन (MSH)
एन्टीरियर पिट्यूटरी:
ADVERTISEMENTS:
इससे कई हारमोन निकलते हैं । इन्हें एसिडिक व बेसिक रंगों से रंगने पर तीन प्रकार की कोशिकायें पायी जाती हैं: एसिडोफिल, बेसोफिल और क्रोमोफोब सेल । एण्टीटियर पिट्यूटरी से कई ट्राफिक या ट्राफिन (Trophic or Trophin ) हारमोन निकलते हैं जो शरीर की वृद्धि (Growth & development) को नियंत्रित करते हैं । अग्रपिट्यूटरी हाइपोथेलमस से कई कैपलरी नेटवर्क द्वारा जुड़ी होती है । जिसे हाइपोथेलेमोहाइपोफीसियल पोरटल (Hypothalamohypophyseal) कहते हैं ।
एण्टीरियर पिट्यूटरी के प्रत्येक हारमोन के स्राव को नियन्त्रित करने हेतु हाइपोथेलमस से कुछ रिलीजिंग फैक्टर निकलते हैं जो इस पोर्टल तन्त्र से गुजरकर एण्टीरियर पिट्यूटरी के स्राव को नियंत्रित करते हैं चित्र (3.65) ।
ग्रोथ हारमोन:
किसी व्यक्ति की शारीरिक वृद्धि को पैतृक गुणों, बाहरी कारणों जैसे भोजन के अतिरिक्त एण्टीरियर पिट्यूटरी के इयोसिनोफिल या एल्फा कोशिकाओं के निकलने वाले ग्रोथ हारमोन की रक्त में उपस्थित मात्रा भी नियंत्रित करती है ।
इस हारमोन की कमी यदि अस्थिओं की इपीफिसिस के जुड़ने (fuse) से पहले या शरीर की वृद्धि के दौरान हो तो व्यक्ति बौना (Dwarfism) रह जाता है तथा इसके विपरीत इसकी अधिक मात्रा जैसे कुछ ट्यूमरों में होता है से हड्डियों, पेशियों व शरीर के आन्तरिक भागों की बहुत अधिक वृद्धि हो जाती है ।
व्यक्ति की लम्बाई 7-8 फुट हो सकती है । वयस्कों में ग्रोथ हारमोन की अधिकता से एक्रोमिगेली (Acromegaly) हो जाती है, जहां शरीर की लम्बाई तो नहीं बढ़ती है पर हाथ, पैर, सिर व जबड़ों (मुख्यत: निचला) बढ़ जाता है । ग्रोथ हारमोन का स्राव हाइपोथेलमस से नियंत्रित होता है । हाइपोथेलमस दो फैक्टर निकालता है ।
(1) ग्रोथ हारमोन रिलीजिंग हारमोन (GHRH) और
(2) ग्रोथ हारमोन इनहिविटिंग हारमोन (GHIH) या सोमेटोस्टेटिन ।
ग्रोथ हारमोन को इनके अतिरिक्त निंद्रा, कसरत व रक्त में ग्लूकोज, एमिनो एसिड और ग्लूकोगोन की मात्रा भी प्रभावित करती है ।
भिन्न ग्रोनेडोट्रापिन व प्रोलेक्टिन हारमोन के कार्यो को नीचे दिया गया हैं:
गोनेडोट्रापिन:
1. फालिकिल स्टिमुलेटिंग हारमोन (FSH) । यह औरतों में ओवेरियन फालिकिल के परिपक्व होने व वृद्धि में मदद करता है ।
2. ल्यूटेनाइजिंग हारमोन (lutenizing Hormone)- यह फालिकिल में पूर्ण परिपक्वता, ओवूल्यूसन (Ovulution), कार्पस ल्यूटियम का निर्माण तथा औरतों में इस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्टेरान के स्राव को बढ़ाता है ।
पुरूषों में यह लेडिग कोशिकाओं (leydigcells) की वृद्धि व टेस्टोस्टेरान के स्राव को बढ़ाता है ।
3. प्रोलेक्टिन (Prolactin) इस्ट्रोजन व प्रोजेस्टेरान की उपस्थिति में प्रोलेक्टिन स्तनों को दुग्ध स्राव के लिए उत्तेजित करत है । गर्म के दौरान यह स्तनों की वृद्धि में मदद करता है तथा बच्चे के जन्म के पश्चात यह मैमरी ग्रन्थियों को दुग्ध स्राव के लिए उत्तेजित करता है ।
अन्य ट्राफिक हारमोन:
1. थाइरोट्रापिन या थायरायड स्टीमुलेटिंग हारमोन (TSH)-यह थायरायड ग्रन्थि की वृद्धि एवं थायरायड हारमोन के स्राव में मदद करता है ।
2. एड्रीनो कार्टिकोट्रापिन (ACTH) -यह एड्रीनल कार्टेक्स की वृद्धि तथा इसके हारमोनों के स्राव को उत्तेजित करता है ।
एण्टीरियर पिट्यूटरी के हारमोनों का नियंत्रण:
1. हाइपोथेलमस द्वारा:
हाइपोथेलमस से हारमोन रिलीजिंग फैक्टर निकलते हैं जैसे ग्रोथ रिलीजिंग, कार्टिकोट्रापिन रिलीजिंग हारमोन, थायरोट्रापिन रिलीजिंग हारमोन, ल्यूटिनाइजिंग रिलीजिंग हारमोन, फालिकिल स्टीमुलेटिंग रिलीजिंग हारमोन । ये सारे रिलीजिंग संबंधित हारमोनों के स्राव को बढ़ाते हैं । इसके अतिरिक्त प्रोलेक्टिव इनहिविटरी हारमोन भी हाइपोथेलमस से निकलता है गर्भावस्था व बच्चे के जन्म के बाद, अतिरिक्त प्रोलेक्टिन स्राव को कम करता है ।
2. सरगेट ग्रन्थियों द्वारा निकले हारमोनों द्वारा या तो सीधे पिट्यूटरी या हाइपोथेलमस द्वारा फीडबैक क्रिया द्वारा इन हारमोनों के स्राव को नियंत्रित किया जाता है ।
3. उच्च तन्त्रिका केन्द्र जैसे लिम्बिक एवं सेरेब्रल कार्टेक्स हाइपोथेलमस के कार्यो को प्रभावित करते हैं अत: इमोशन एवं स्टेस (कठिनाई) के समय रिलीजिंग फैक्टर में परिवर्तन होने से एम्टीरियर पिट्यूटरी के स्राव भी प्रभावित होते हैं ।
पोस्टीरियर पिट्यूटरी:
इससे दो हारमोन निकलते हैं:
1. एण्टीडाइयूरेटिक हारमोन (ADH)
2. आक्सीटोसिन (Oxytocin)
इन दोनों का निर्माण हाइपोथेलमस के तन्त्रिका तन्तुओं से होता है । वहां से वे एकजानों (Axons) द्वारा पोस्टीरियर लोव में पहुंचते हैं । पोस्टीरियर लोव से इनका स्राव रक्त में होता है ।
एण्टीडाइयूरेटिक हारमोन:
इस हारमोन का मुख्य कार्य शरीर से अधिक पानी की हानि को मूत्र में पानी की मात्रा को कमकर नियंत्रित करना है । इसका कार्य गुर्दे में स्थित डिस्टल कन्वूल्यूटेड ट्यूव्यूल व क्लेक्टिंग डक्ट की परिमियेविल्टी पानी के लिए बढ़ाना है । इस प्रकार अधिक पानी सोख लिया जाता है और मूत्र की मात्रा कम हो जाती है ।
इस क्रिया को एण्टीडाइयूरेटिक क्रिया कहते हैं । डाइयूरेटिक का अर्थ अधिक मात्रा में मूत्र का होना है । एण्टीडाइयूरेटिक हारमोन का निर्माण प्लाज्या का आसमोटिक कन्सेन्ट्रेसन बढ़ने से हाइपोथेलेमस द्वारा किया जाता है । एण्टीडाइयूरेटिक हारमोन की मात्रा कम होने पर अधिक डाइयूरेसिस होती है । इस स्थिति को डायविटीज इन्सीपिडस कहते हैं ।
आक्सीटोसिन:
इसका निर्माण भी हाइपोथेलमस द्वारा किया जाता है तथा इसका स्राव पास्टीरियर पिट्यूटरी से होता है ।
इसके मुख्य कार्य निम्न हैं:
1. बच्चे के जन्म के समय गर्भाशय के क्रान्ट्रैक्सन को उत्तेजित करना ।
2. स्तनों से दुग्ध का स्राव करवाना ।
अत: इसका प्रयोग बच्चे के जन्म व जन्म के पश्चात गर्भाशय के कान्ट्रैक्सन बढ़ाने के लिये किया जाता है तथा स्तनों से दुग्ध स्राव के लिये भी प्रयोग किया जा सकता है ।
2. एड्रीनल (Adrenal Gland):
एड्रीनल ग्रन्थियां दोनों गुर्दो के ऊपरी सिरे पर टोपी की तरह स्थित होती हैं, इन्हें सुप्रारीनल ग्रन्यियां भी कहते हैं । प्रत्येक ग्रन्थि दो भागों में बनी होती हैं बाहरी भाग कार्टेक्स व अन्दर वाला भाग मेडूला । प्रत्येक भाग अलग-अलग अन्त: स्रावी ग्रन्थि की तरह कार्य करता है ।
एड्रीनल कार्टेक्स:
इसमें कोशिकाओं की तीन पर्ते होती हैं जिनके अनुसार इसे तीन भागों में बांटा जा सकता है । जोना ग्लोमेरूलोसा, कैसीकुलेटा, और जोना रेटीकुलरिस (चित्र 3.66) ।
इन कोशिकाओं से निम्न हारमोन निकलते हैं:
जोना ग्लोमेरूलोसा = मिनरेलीकार्टिक्वायड (Mineralocorticoids)
जोना फेसीकुलेटा = ग्लूकोकार्टिक्वायड (Glucocorticoids)
जोनारेटीकुलरिस = ग्लूकोकार्टिक्वायड और जनन हारमोन (Glucocorticoid & sex Hormones )
मिनरेलोकार्टिक्वायड:
सामान्य तौर पर व स्ट्रेस की स्थिति में यह कार्बोहाइहेट, वसा व प्रोटीन के उपापचय को नियंत्रित करता है ।
मुख्य ग्लूकोकार्टिक्वायड दो प्रकार के होते हैं:
(1)कार्टीसाल
(2) कार्टि कोस्टेरान
इनका शरीर पर प्रभाव:
1. रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ाना (Hperglycemic effect) यह प्रोटीन को ग्लूकोज में परिवर्तित कर देता है । (Glucneo genesis)
2. वसा की उपापचय को बढाना (Catabolism of fats)
3. कुछ हद तक सूजन कम (Antiflammatory) करने तथा एलर्जी के खिलाफ (Antiallergic) कार्य ।
कार्टिक्वायड के स्राव को एण्टीरियर पिट्यूटरी से निकल-वाले एड्रीनो कार्टिकोट्राफिक हारमोन नियंत्रित करता है जो स्वयं हाइपोथेलमस से निकलने वाले रिलीजिंग फैक्टर से नियंत्रित होता है । हाइपोथेलमस को फीडबैक रक्त में ग्लूकोकार्टिक्वायड से मिलता है ।
रक्त में ग्लूकोकार्टिक्वायड की मात्रा अधिक होने पर हाइपोथेलमिक रिलीजिंग फैक्टर इन्हिविट कर दिया जाता है जो पिट्यूटरी से एड्रीनोकार्टिकोट्राफिक हारमोन के स्राव को कम कर देता है ।
जनन हारमोन:
एड्रीनल कार्टेक्स से थोड़ी मात्रा में सेक्स हारमोनों का स्राव होता है । जैसे औरतों में थोड़ा टेस्टोस्टेरान व पुरुषों में थोड़ा इस्ट्रोजन व प्रोजेस्टेरान का स्राव । इन हारमोनों कें अधिक स्राव से जैसे औरतो में टैस्टोस्टेशन के स्राव से मेस्कूलनाइजिंग प्रभाव (ढ़ोड़ी पर वालों का उगना) पड़ता है ।
एड्रीनल मेडुला:
एड्रीनल मेडूला से दो कैटाकोलेमीन (Catecholemines) निकलते हैं जिसमें लगभग 80 प्रतिशत इपीनेफ्रीन और शेष नारइपीनेफ्रीन प्रमुख हैं । ये हारमोन स्मूथ पेशियों, हृदय पेशी, व ग्रन्थियों को सिम्पैथैटिक स्टीमुलेसन की तरह प्रभावित करते हैं ।
इन हारमोनों का स्राव हाइपोथेलमस से नियंत्रित होता है जो सिम्पैथेटिक नर्वस तन्त्र को प्रभावित करता है जो बदले में एड्रीनल मेडूला को कैटीकोलेमीन स्राव के लिए उत्तेजित करते हैं । स्ट्रेस की स्थिति में एड्रीनल मेडूला बहुत अधिक मात्रा में एड्रीनेलिन व नार एड्रीनेलिन का स्राव करता है ।
3. थायरायड ग्रन्थि (Thyroid Gland):
यह गर्दन में स्वर-यन्त्र के ठीक नीचे स्थित होती है । इसके दो लोब (lobes) होते हैं जो मध्य में इस्थमस से जुड़े होते है (चित्र 3.67) । सामान्य वयस्क में इसका वजन लगभग 20 ग्राम होता है । प्रत्येक लोब को मुख्य धमनियों द्वारा रक्त पहुंचाया जाता है । इक्सटरनल कैरोटिड धमनी की शाखा सुपीरियर थायरायड धमनी (Superior Thyroid Artery) तथा सवक्लेवियन की शाखा इन्फीरियर थायरायड धमनी (Inferior Thyroid Artery) थायरायड ग्रन्थि बहुत वैसकुलर ग्रन्थि है ।
इसकी फन्कसनल यूनिट फालिकिल है जो कोशिकाओं की अकेली परत से बनती है । यह एक इक्सट्रासेलुलर स्पेस को घेरे रहती है । सामान्य थायरायड ग्रन्थि में लगभग 30 लाख फालिकिल होते हैं । प्रत्येक फालिकिल में प्रोटीनसियस कोलोयाड होता है ।
जिसमें ग्लायकोप्रोटीन थायरोग्लोविन पाया जाता है जो थायरायड हारमोन का इकट्ठा रूप है । (थायराक्सिन व ट्राइआयडोथाइरोनीन) इनके अतिरिक्त इसमें कुछ अन्य पैराफालिकुलर सेल या “सी” सेल पाये जाते हैं । ये सेल एक अन्य हारमोन “कैल्सीटोनिन” बनाते हैं ।
थायरायड हारमोन का निर्माण व स्राव:
थायरायड ग्रन्थी आयोडाइड ट्रेपिंग की किया द्वारा रक्त से आर्कार्विनिकआयोडाइड लेती है । यह आयोडाइड तुरंत एसिनर कोशिकाओं में आयोडीन में आक्सीकृत हो जाता है । फिर थायरोग्लोविन की सतह पर स्थित टायरोसीन मालीक्यूलो का आयोडीनीकरण होता है ।
कई सारी क्रियाओं के पश्चात मोनोआयोडोटायरोसीन (MIT) और डाइआयडोटायरोसीन (डी॰आइ॰टी॰) का निर्माण होता है । दो डी॰आई॰टी॰ मिलकर थायरक्सिन (T4) का निर्माण करते हैं व डी॰आई॰टी॰ (DIT) और एम॰आई॰टी॰ (MIT) मिलकर T3 ट्राइआयडोथायरोनीन का निर्माण करते हैं, जो मुख्य थायरायड हारमोन है । उनका रक्त में स्राव थायरायडस्टीमुलेटिंग हारमोन (TSH) द्वारा उत्तेजित किया जाता है ।
रक्त में ये हारमोन प्रोटीन से मिलकर प्रोटीन बाउन्ड रूप में रहते हैं । कोशिकाओं में पहुंचने पर हारमोन पुन: मुक्त हो जाता है । टी-3 व टी-4 की आयोडीन प्रोटीन वाइन्ड रूप में प्रोटीन वाइन्ड आयोडीन (पी॰बी॰आई॰) कहलाती है । इसकी मात्रा 4-8 माइक्रोग्राम/100 मिली प्लाज्मा होती है ।
थायरायड हारमोनों (टी-3 व टी-4) के कार्य:
1. उपापचय की दर का नियंत्रण
2. कोशिकाओं की वृद्धि तथा टिश्यूडिफरेन्सियेशन
3. बच्चों में मस्तिष्क कोशिकाओं की परिपक्वता का कार्य
4. कैल्सीटोनिन रक्त में कैल्सियम की मात्रा घटाकर, रक्त में इसकी मात्रा को नियंत्रित करता है ।
थायरायड ग्रन्थि से अति स्राव की स्थिति में ग्रेव्जडिजीज (Exophthalmic goitre) हो जाती है जिसमें रक्त में प्रोटीनबाउन्ड आयोडाइड की मात्रा बढ़ जाती है । सामान्य उपापचय दर बढ़ जाती है । इसके अतिरिक्त भूख बढ़ना, वजन घटना, एक्ज्रोफथेलमास आदि भी इसके लक्षण हैं ।
शरीर की वृद्धि के दौरान इसका कम स्राव क्रिटेनिज्म (Cretinism) नामक स्थिति को जन्म देता है जिसके लक्षण कम सामान्य उपापचय दर व घटी हुई शारीरिक व मानसिक वृद्धि । शुरुआत में ही यदि स्थिति को पहचाना न गया तथा उपचार न किया गया तो बच्चा मन्द बुद्धि हो सकता है ।
यदि वयस्क में हाइपोथायरायडिज्य होता है तो उसे मिक्सीडीमा (Myxedema) कहते हैं । इसके लक्षण घटी हुई बी॰एम॰आर॰ व शारीरिक व मानसिक क्रियायें घीमी त्वचा का मोटापन और द्रव का इकट्ठा होना है ।
घेंघा:
बढ़ी हुई थायरायड ग्रन्यि को घेंघा रोग कहते है । ग्वाइटर या घेंघा हाइपरथायरायड (एक्जोफथेलिमक ग्वाइटर) की वजह से या आयोडीन की कमी में होने वाला इन्डेमिक ग्वाइटर हो सकता है जो उन स्थानों पर पाया जाता है जहां पानी व भोजन में आयोडीन की मात्रा कम होती हे ।
4. पैन्क्रियाज (Pancreas):
पैन्क्रियाज एक ट्यूव्यूलों एसिनर ग्रन्थि (Tubulo acinar gland) है जिसमें इन्होक्रीन व इस्सौक्रीन दोनों कार्य होते हैं । इसके बहि: स्रावी कार्य में एसिनर कोशिकाओं द्वारा पैन्क्रियाटिक जूस का निर्माण होता है जो पैन्क्रियाटिक रक्त द्वारा डियोडिनम में पहुंचता है जो भोजन के पाचन में काम आता है ।
अन्त: स्रावी कार्य के अंतर्गत कुछ विशेष कोशिकायें जिनमें आइलैण्ड आफ लैगरहैन्स (Islands of Langerhans) आती है, इसमें दो प्रकार के सेल पाये जाते हैं: एल्फा सेल एवं बीटा सेल तथा शेष कोशिकाओं में डी सेल, डेल्टा सेल, और ए सेल कहते हैं ।
इनका 25 प्रतिशत भाग एल्फा सेलों से बना होता है जिससे हारमोन ग्लूकोगान निकलता है । वीटा सेल आकार में छोटे होते हैं पर लगभग 70 प्रतिशत भाग बनाते हैं तथा इनसे इन्सुलिन का स्राव होता है । डेल्टा कोशिकाओं से सोमेटोस्टेटिन का स्राव होता है । रासायनिक संरचना में ये हारमोन पालीपेप्टाइड होते हैं ।