Read this article in Hindi to learn about the process of urine formation in human body.
1. फिल्टरेसन या छनना:
काडियक आउटपुट का लगभग 25 प्रतिशत रक्त गुर्दो से प्रति मिनट प्रवाहित होता है और इसका लगभग 1/10 भाग ग्लोमेरूलर कैपलिरियों मे अल्ट्राफिल्ट्रेशन द्वारा छन जाता है । यह छनने की क्रिया ग्लोमेरूलर कैपलिरियों के रक्त दाब द्वारा होती है । यह दाब लगभग 70 मिली॰ मरकरी होता है जो अन्य कैपलिरियों की अपेक्षा बहुत अधिक होता है ।
चूंकि प्लास्मा प्रोटीनों को आस्मोटिक दाब 25 मिमी॰ मरकरी होता है तथा बोवेन कैप्सूल का हाइड्रोस्टेटिक दाब लगभग 10 मिमी॰ मरकरी होता है इस प्रकार छनने के लिए कुल फिल्टरिग दाब लगभग 35 मिमी॰ मरकरी होता है । इस प्रकार छनने के लिए प्रति मिनट छनने वाले आयतन को ग्लोमेरूलर फिल्टरेशन दर कहते हैं ।
यह निम्न पर निर्भर है:
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A. रक्त दाब:
गुर्दे में एक गुण स्वयं नियंत्रण (Autoregulation) का होता है । रक्त दाब 80 मिमी॰ से 200 मिमी॰ मरकरी तक रहने पर गुर्दो का रक्त प्रवाह नहीं बदलता है । अत: इस हद तक रक्तदाब में परिवर्तन होने से गुर्दो का रक्त प्रवाह व जी॰ एफ॰ आर॰ परिवर्तित नहीं होता है, जब रक्तदाब बहुत कम हो जाता है तो स्वत: नियंत्रण कार्य नहीं कर पाता है तथा फिल्ट्रेशन कम हो जाता हे ।
B. बोमैनस कैप्सूल का दाब:
यदि किसी रुकावट से बढ़ जाता है तो फिल्ट्रेशन घट जाता है ।
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C. कैपिलरी परमियेबिलिटी (Capillary Permeability):
सामान्य अवस्था में ग्लोमेरूलर मेम्ब्रेन उन कणों जिनका आकार 4 मि॰मी॰ से बड़ा होता है या जिनका परमाणु भार 70,000 से अधिक होता, को छनने नहीं देती है । रोगों में मेम्ब्रेन की परमियेबिलिटी बढ़ जाती है जिससे बड़े-बड़े कण जैसे एल्वयूमिन भी छन जाते हैं । छनने के पश्चात् फिल्ट्रेट में रक्त कणों, प्रोटीन व प्लेटलेट को छोड़कर रक्त के समस्त पदार्थ होते हैं । इस प्रकार 24 घण्टे के 170 ली॰ फिल्ट्रेट मेंतथा कुछ अन्य पदार्थ जैसे यूरिक एसिड और क्रियेटिनिन भी पाये जाते हैं । उपरोक्त तालिका को देखने से पता चलता है कि फिल्ट्रेट के ट्यूव्यूल में गुजरते समय कुछ आवश्यक पदार्थ जैसे ग्लूकोज, सोडियम, बाइकार्बोनेट आदि पूरी तरह अवशोषित कर लिये जाते हैं, जबकि शरीर के लिए अनुपयोगी पदार्थो को मूत्र में छोड़ दिया जाता है । अत: फिल्ट्रेशन के पश्चात रिजार्प्सन (Resorption) व सिक्रीशन (Secretion) की क्रिया होती है ।
2. ट्यूव्यूलर रिजार्प्सन:
शरीर के लिए उपयोगी पदार्थो जो फिल्ट्रेट में होते हैं, उन्हें इस क्रिया द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है व शरीर के लिए उनुपयोगी पदार्थो जैसे यूरिया, यूरिक एसिड, क्रियेटिनिन आदि को नहीं या बिल्कुल कम अवशोषित किया जाता है । रिजार्प्सन की क्रिया पदार्थों को ट्यूव्यूल से रक्त कैपिलरी में जाने की क्रिया को कहते हैं ।
यह क्रिया कई पदार्थो के लिए एक्टिव क्रिया (Active process) है । अर्थात इस क्रिया के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जबकि कुछ पदार्थ बिना ऊर्जा की आवश्यकता के ही अवशोषित हो जाते हैं ।
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कुछ पदार्थो के अवशोषण निम्न हैं:
ग्लूकोज:
सामान्य अवस्था में फिल्ट्रेट में स्थित सारा ग्लूकोज रक्त में पुन: अवशोषित हो जाता है अत: मूत्र में ग्लूकोज बिल्कुल नहीं पाया जाता है । यह अवशोषण प्राक्सिमल कन्व्यूले टेड ट्यूव्यूल में ही होता है तथा यह एक्टिव क्रिया है ।
वह अधिकतम दर जिस पर ग्लूकोज अवशोषित हो सकता है को ट्यूव्यूलर मैक्सिमम फार ग्लूकोज (Tabular Maximum for Glucose) कहते हैं, यदि ट्यूव्यूल में सामान्य की अपेक्षा ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाये जो रक्त में ग्लूकोज की मात्रा 150 मिग्रा॰ प्रति 100॰ रक्त से अधिक होने लगती है तो ग्लूकोज मूत्र में आने लगता है ।
मूत्र में ग्लूकोज आने को ग्लाइकोसूरिया कहते हैं । रक्त में ग्लूकोज की वह मात्रा जिससे अधिक होने पर रिजार्प्सन क्रिया ग्लूकोज को पूरी तरह अवशोषित नहीं कर पाती है, को रीनल थ्रेसहोल्ड कहते हैं । यह 180-200 मिग्रा॰ प्रति 100 मिली॰ रक्त होता है ।
प्राक्सिमल ट्यूव्यूल की एर्ब्जाप्टिव लिमिट टी॰एम॰जी॰ लगभग 1 मिली॰/मिनट होती है । जब रक्त का ग्लूकोज की मात्रा 180 मिग्रा / 100 मिली॰ से अधिक हो जाती है जैसे मधुमेह या अन्य गुर्दे की बीमारियों में जहां टी॰एम॰जी॰ घट जाता है तब ग्लाइकोसूरिया हो जाती है ।
3. इक्ट्रोलाइटों को पुन: शोषण:
कुल इलेक्ट्रोलाइटों का पैसिव व कुछ का एक्टिव रिजार्प्सन होता है । सोडियम आयन का रिजार्प्सन ट्यूव्यूल के हर भाग से एक्टिव रिजार्प्सन होता है, फिर भी अधिकतर (7/8 भाग) सोडियम प्राक्सिमल ट्यूव्यूल में अवशोषित हो जाता है । इसमें एक एक्टिव इलैक्ट्रोजेनिक पम्प क्रिया होती है जिसके फलस्वरूप धनात्मक आवेश व आयन सोडियम के पश्चात ऋणायन क्लोराइड अवशोषित होता है ।
इस भाग में पानी पैसिविली सोखा जाता है । इस पानी के अवशोषण को जो सोडियम के अवशोषण के कारण होता है को ओबलीगेटरी वाटर रिजार्प्सन (obligatory water resorption) कहते हैं । केवल 1/8 भाग सोडियम का अवशोषण हेनलेलूप में व डिस्टल ट्यूबल में होता है । डिस्टल ट्यूव्यूल में सोडियम का रिजार्प्सन एड्रीनल कार्टेक्स के हार्मोन एल्डोस्टेरोन से ज्यादा बढ़ाया जाता है ।
पोटेशियम:
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छने हुये अधिकतर पोटैशियम का पुन: अवशोषण प्राक्सिमल कन्वल्यूटेड ट्यूव्यूल में होता है, लेकिन डिस्टल ट्यूव्यूल में यह सिक्रीसन (Secretion) द्वारा पुन: मूत्र में आ जाता है ।
बाइकार्बेनेट:
छने हुये कुल बाइकार्बोनेटों का लगभग 90 प्रतिशत प्राक्सिमल कन्वल्यूटेड ट्यूव्यूल में अवशोषित हो जाता है । इसका अवशोषण इक्ट्रासेलुलर द्रव्य के गाढ़ेपन (Concentration) से सम्बन्धित है । फिल्ट्रेट के ट्यूव्यूल में आगे बढ़ने पर एक अन्य क्रिया सिक्रीसन (Secretion) होती है ।
ये दोनों क्रियायें ग्लोमेरूलर फिल्ट्रेट से शरीर के लिए आवश्यक पदार्थो को रोक लेती है, जबकि अनुपयोगी पदार्थो को बाहर मूत्र के साथ निकाल देती है । इसके अतिरिक्त रक्त का आयतन व PH भी स्थिर रखती है । सिक्रिसन का अर्थ पदार्थो ट्यूव्यूलर का सेलों से इसके ल्यूमेन में पहुंचना है ।
दो प्लाज्या में पाये जाने वाले प्राकृतिक पदार्थ जिनका ट्यूव्यूलर सेलों द्वारा सिक्रीसन होता है, पोटैशियम व हाइड्रोजन आयन है । मूत्र में पाया जाने वाला अधिकतर पोटैशियम डिस्टल ट्यूव्यूल में सिक्रीसन द्वारा आता है । इसके लिए यद्यपि ट्यूव्यूलर सेलों की परिमियेविलिटी अधिक होती है ।
पर इसका सिक्रीसन सोडियम व हाइड्रोजन आयन व एल्डोस्टेरोन की प्लाज्मा में मात्रा पर भी निर्भर करता है । हाइड्रोजन आयन का सिक्रीसन एक एक्टिव क्रिया है जो ट्यूव्यूल के सभी भागों में होती है पर अधिकतर डिस्टल ट्यूव्यूल में होती है । इसके सिक्रीसन एसिड वेस बैलंस पर निर्भर करता है ।
फिल्ट्रेट का PH 4.5 से 8.5 हो सकता है । अत: मूत्र एसिडिक या एल्केलाईन, कुछ भी हो सकता है । कुछ रासायनिक पदार्थ एक्टिविली सिक्रीट होते हैं जैसे पैरा हिप्पीयूरिक एसिड (PAH) प्राक्सिमल ट्यूव्यूल में सिक्रीट होता है तथा इसका प्रयोग रीनल प्लाजमा प्रवाह मापने में किया जाता है । कुछ दवायें भी पी॰सी॰टी॰ में सिक्रीट होती है ।
मूत्र का अन्तिम कन्सन्ट्रेसन 1200-1400 मिली॰ आसमोल/लीटर तक हो सकता है । जो प्लाज्मा (250-300 मिली॰ ओमो/लीटर) का लगभग 4-5 गुना होता है । मूत्र की आसमोलरेटी 50-1400 मिली आसमील/लीटर कुछ भी हो सकती है, यह हाइड्रेसन पर निर्भर करती है । पानी अधिक लेने पर आसमोलरेटी कम होती है जबकि निर्जलन की अवस्था में अधिक भिन्न फैक्टर पानी के अवशोषण में मदद करते हैं ।
इनमें से मुख्य फैक्टर फिजिकल फोर्स है जो मेडूला की आसमोलरेटी के कारण होती है । कार्टेक्स में मेडूला तक रीनल इन्ट्रेसटीशियम में आसमोलरेटी बढ़ती जाती है । (300 से 2000) । इस बढ़ती हुई आसमोलरेटी के लिये काउन्टरकरेन्ट क्रियाविधि को जिम्मेदार माना गया है ।
इसके अतिरिक्त पोस्टीरियर पिट्यूटरी से निकलने वाला एन्टीडाइयूरेटिक हारमोन भी पानी के अवशोषण में मदद करता है । यह प्रभाव मुख्य रूप से डिस्टल ट्यूव्यूल व क्लेकिंटग डक्ट पर होता है । ए॰डी॰एच॰ (ADH) की कमी या अनुपस्थिति से मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है क्योंकि पानी का अवशोषण कम हो जाता है ।